Power of Dedication समर्पण की शक्ति
तानसेन मुग़लकालीन भारत के सबसे अच्छे संगीतकार थे । वे अकबर के दरबार में नवरत्नों में से एक रत्न थे । अकबर उनके संगीत के दीवाने थे, एक दिन शाम के समय अकबर और तानसेन बैठे हुए थे । तभी अकबर ने तानसेन की तारीफ करते हुए कहा- तानसेन तुम संसार के सबसे अच्छे संगीतकार हो और मुझे नहीं लगता कि तुमसे अच्छा संगीतकार कभी हुआ हैं और न ही भविष्य में कोई होगा ।
यह सुनकर तानसेन काफी तेज हंसने लगे और हंसते हुए ही बोले- महाराज आप भूत और भविष्य की बात करते हैं, इसी समय मेरे परम पूज्य गुरू हरिदास जी मौजूद हैं जिनके संगीत के सामने मेरा संगीत कुछ भी नहीं हैं । अकबर यह सुनते ही तरह चौंक गए, उन्होंने ने दृढ़तापूर्वक कहा- यह तो हो ही नहीं सकता शायद वे तुम्हारे गुरु हैं, इसीलिए तुम्हे ऐसा लग रहा हैं ।
तानसेन ने कहा- नहीं महाराज मैं जो कह रहा हूँ, वह बात शतप्रतिशत सत्य हैं और इसमें गुरु-प्रभाव तनिक भी शामिल नहीं हैं । मेरे गुरु हरिदास जी वास्तव में मुझसे कई गुना अधिक प्रतिभावान हैं । लेकिन अकबर को तानसेन कि इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था, इसीलिए उन्होंने तुरंत ही तानसेन से कहा- ठीक हैं तो उन्हें दरबार में शीघ्र बुलवाओ, मैं उनका संगीत सुनना चाहता हूँ ।
तानसेन ने हंसते हुए कहा- वे दरबार में कभी भी नहीं आयेंगे, उनका संगीत
सुनना हो तो हमें ही उनके निवास स्थल चलना
पड़ेगा । अब अकबर जो कला-प्रेमी थे और कलाकारों कि बड़ी ही इज्जत करते थे । वे तुरंत
ही तानसेन के साथ हरिदास जी के घर जाने को निकल पड़े । अकबर और तानसेन ने हरिदास जी
के यहाँ पहुच कर उनका आशीर्वाद लिया और वहीँ रुक गए ।
अकबर तानसेन से बोलें – तानसेन हम किस बात का इंतजार कर रहे हैं ? तुम अपने गुरूजी से कहों कि महाराज अकबर आपका संगीत सुनाने के लिए स्वयं पधारे हैं आप उन्हें संगीत सुनाइए । तानसेन ने कहा- यह नहीं हो सकता हैं महाराज गुरूजी को आपके आने-जाने से कोई फर्क ही नहीं पड़ने वाला हैं । वे तो अपनी मर्जी से अपने समय पर ही राग छेड़ेंगे । इसलिए हमें उनके राग छेड़ने का इंतजार करना पड़ेगा ।
अब तो और कुछ किया नहीं जा सकता था और अकबर को हरिदास का संगीत सुनना ही था, तो वे चुपचाप वही रुक गए और हरिदास जी के राग छेड़ने का इन्तजार करने लगे । दो दिन बीत जाने के बाद मध्यरात्रि को हरिदास जी ने अलाप छेड़ा और छेड़ा तो ऐसा छेड़ा कि अकबर स्तब्ध रह गए और मंत्रमुग्ध हो गए, उनकी आँखों से आंसू बहने लगे । उन्होंनेक कहा- तानसेन तुम्हारी बात सौ फ़ीसदी सही थी । तुम्हारे गुरु के आगे तुम्हारा संगीत भूंसे के सामान हैं, तुम्हारा और तुम्हारे गुरु का कोई मुकाबला हो ही नही सकता था ।
हरिदास जी का पूरा गान सुनकर अकबर व तानसेन राजमहल के लिए वापस निकल पड़े, रास्ते में अकबर ने तानसेन से पूछा – तुम ऐसा क्यों नहीं गा सकते ? प्रयास करो, दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं हैं । तानसेन ने कहा – यह कभी भी नहीं हो सकता हैं । अकबर ने चौकते हुए पूंछा कि ऐसा क्यों ? तानसेन ने कहा- बात प्रतिभा या प्रयास की नहीं हैं । बात यह हैं, कि मैं आपके दरबार में आपके कहने पर और आपकी बड़ाई में गाता हूँ और मेरे गुरु जी बिना किसी के कहने और दबाव के अपने स्वछन्द मन से स्वयं ही गातें हैं । मुझमे गुरूजी वाली बात की आ सकती हैं वह तो आ ही नही सकती हैं । मनुष्य जो कार्य अपनी मस्ती में बिना किसी के दबाव के स्वछन्द मैन से और सिर्फ स्वयं कि ख़ुशी के लिए करता हैं, उसकी बात ही कुछ अलग होती हैं ।
MORAL
अधिकतर यह देखा जाता हैं, कि व्यक्ति कितना भी प्रतिभावान हो और प्रयास भी कर
रहा हो पर उसे सफलता नहीं मिलती हैं जिसकी उसे छह होती हैं । क्यों ? क्युकी व्यक्ति अपनी प्रतिभा का उपयोग
अधिकतर दूसरों पर रूआब झाड़ने, दूसरों को नीचा दिखाने या दूसरों कि जी-हुजूरी करने
में अपनी प्रतिभा का गला घोंट देता हैं । व्यक्ति प्रयास भी सम्मान व समृद्धि पाने
हेतु ही करता हैं, लेकिन वह भूल जाता हैं, कि इन सब चक्करों में उसकी वास्तविक प्रतिभा छिप
रही हैं ।
हमें यह हमेशा ध्यान रखना होगा कि जिन्होंने भी ऐतिहासिक सफलता पायी हैं, उन्होंने अपनी प्रतिभा अपनी का उपयोग बिना किसी के दबाव अपने स्वछन्द मन से किया हैं । इस कारण उनकी प्रतिभा कुछ ऐसी निखरी हैं, कि पूरे विश्व में उनकी प्रतिभा को सलाम किया जाटा हैं । इसीलिए आप में प्रतिभा हैं तो उसी में डूब जाओ उसी का आनंद लो और उसी में झूमों और स्वछन्द मन से वो कार्य करों जो करना चाहते हों उससे तनिक भी भ्रमित न हो दूसरों को नीचा दिखाने, अपने सम्मान व समृद्धि का भी ख्याल छोड़ दो क्युकी आपकी सफलता के साथ वे आपके द्वारा पर अपने आप ही आयेंगे ।
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